“मैं” सिर्फ़ एक भौतिक “मैं” नहीं है; यह हमारे भौतिक शरीर और मन (भौतिक दुनिया के साथ हमारी अंतःक्रियाओं द्वारा निर्मित) का मिश्रण है।
“मैं” से परे जाना “मैं” के दोनों पहलुओं: शरीर और मन से परे जाना है।
जो बचता है वह है चेतना, जीवन, अस्तित्व (मैंपन), “मैं” से स्वतंत्र।
जीवन (जीवन देने वाला जीवन) इस सबके केंद्र में है, अपने आप में, बिना हिले-डुले संसार की पूरी अंतर्क्रिया को देख रहा है, ठीक वैसे ही जैसे एक अचल धुरी पहिये के केंद्र में है।
इस अचल जीवन की धुरी के चारों ओर रूप आते-जाते रहते हैं।
मैंपन, जीवन देने वाला जीवन, वही जीवन जो कभी नहीं मरता