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आजचा सुविचार।
प्रत्येक इच्छा हमारी चेतना को ख़त्म करके और हमारी वास्तविक पहचान को ख़त्म करके हमें कमज़ोर कर देती है।
मानव इतिहास की सदियों में आनंद की अधिकाधिक वस्तुएं बनाई गई हैं, जो हमारे आंतरिक केंद्र को कमजोर कर रही हैं।
वस्तुएं बदलती रहती हैं, लेकिन उनके पीछे का मूल सिद्धांत वही रहता है।
सुख की वस्तुएँ निर्भरता और लोभ की ओर ले जाती हैं, जिससे हमारी आध्यात्मिक शक्ति नष्ट हो जाती है।
आप वस्तुओं या लोगों से जुड़े हो सकते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
धीरे-धीरे, आप उनसे सम्मोहित (अचेतन) हो जाते हैं, और आप कुछ और नहीं सोच पाते।
और उस अवस्था में, मनुष्य उन्हें प्राप्त करने के लिए अपना समय, संसाधन, शुभचिंतक, ज्ञान आदि कुछ भी या किसी का भी बलिदान कर देगा।
जैसे-जैसे आप अपने आप को सुख की अधिकाधिक वस्तुओं से घेरते हैं, आप अपनी असली पहचान खोने लगते हैं।
और धीरे-धीरे, वे आपकी नई पहचान बन जाते हैं, (तदात्म्य – तत् = आप, आत्मा = आत्मा, आप मेरी आत्मा हैं)।
एक बार जब आत्मा गहराई में दफन हो जाती है, तो आप एक मृत व्यक्ति बन जाते हैं, क्योंकि आपका जीवन केवल मृत पदार्थ – वस्तुओं, लोगों, स्थितियों, एक नकली पहचान (संसार) के आसपास घूमता है।
आध्यात्मिक चिंगारी अब नहीं रही और एक और बहुमूल्य मानव जीवन व्यर्थ समाप्त हो गया।
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