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आजचा सुविचार।
भले ही हम पदार्थ में पैदा हुए हों, लेकिन आत्मा ही हमारी नियति है।
हम अपनी अज्ञानता के कारण पदार्थ पर ही विचार करते रहते हैं।
पदार्थ किसी भी रूप में (वस्तु, व्यक्ति, परिस्थितियाँ) हमेशा बदलता रहता है, हमेशा गतिशील रहता है, और हमेशा टालता रहता है।
उस पर निर्भर रहना रेत में महल बनाने जैसा है, जो निश्चित रूप से ढह जाएगा।
सुख की वस्तुओं पर निर्भर रहना, “अपने” धर्म, “अपने” दर्शन, “अपने” विचारों और विश्वासों के अन्य अनुयायियों के सहारे पर निर्भर रहना, अपने सहारे के लिए दूसरों पर निर्भर रहना आदि बचकाना है।
आध्यात्मिक मार्ग इसी अनुभूति का मार्ग है, अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने का मार्ग है।
उस अनंत आत्मा का एक अंश हमारे भीतर आत्मा के रूप में है।
आत्मा ही एकमात्र सहारा है जो आपको कभी निराश नहीं करता; “स्वयं” पर निर्भर रहें। (सच्चा स्व = आत्मा)।
अपनी सभी निर्भरताओं को काट दें, और एक शेर की तरह उभरें जो अपने लिए शिकार करता है, और अपने लिए जीता है; आत्मा द्वारा निर्देशित अपना रास्ता खोजें।
यदि आप ध्यान के माध्यम से इसे गहराई से समझते हैं, तो पदार्थ और आत्मा को छांटना तेल और पानी को छांटने जैसा आसान है।
बेशक, सभी पदार्थ पदार्थ ही हैं (वस्तुएँ, लोग, परिस्थितियाँ, जिसमें आपका शरीर भी शामिल है)।
लेकिन आपके सभी विचार, भावनाएँ और अनुभव भी पदार्थ से ही निकले हैं और पदार्थ के इर्द-गिर्द ही केंद्रित हैं।
अज्ञानता है – इसे न समझना।
इसमें आपका पूरा जीवन लग सकता है, लेकिन यह अहसास किसी न किसी बिंदु पर होना ही है, और वह बिंदु मोक्ष का बिंदु है, पदार्थ से मुक्ति और आत्मा में प्रवेश करने का बिंदु – स्वयं जीवन – परम स्वतंत्रता।
इस जीवन में और कुछ भी मायने नहीं रखता; केवल जीवन मायने रखता है (सकारात्मकता); बाकी में रहना मृत्यु (नकारात्मकता) के साथ खिलवाड़ करना है।
हर समय, मौन में, भीतर रखने योग्य एकमात्र प्रार्थना।
असतोमा सद्गमय (मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो)
तमसोमा ज्योतिर्गमय (अंधकार से प्रकाश की ओर)
मृयुमा अमृतम गयम (मृत्यु से अमरता की ओर)।
ओम शांति, शांति, शांतिहि। (शांति, शांति, शांति।)
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