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मौन।
जो बहुत बोलता है, वह नहीं बोलता। जो नहीं बोलता, वह बहुत बोलता है। ( silence speaks a lot )
शब्दों को यह एहसास नहीं होता कि वे मौन को नहीं समझ सकते; मौन ही मौन को समझ सकता है।
मौन को समझने के लिए शब्दों का अनुपस्थित होना ज़रूरी है, लेकिन जब वे अनुपस्थित होते हैं, तो मौन को समझने के लिए केवल मौन ही बचता है।
और यही आध्यात्मिक मार्ग की दुविधा है।
मन (विचार, शब्द, बुद्धि) आत्मा को समझने की कोशिश करता है।
लेकिन आत्मा का मतलब उसे समझना नहीं, बल्कि आत्मा होना है।
आत्मा बनने के लिए मन का अनुपस्थित होना ज़रूरी है।
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