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हीरा और लाल मखमल
हीरा अपने आस-पास के मखमली रंग को स्वीकार करना शुरू कर देता है।
हीरे का लाल रंग लाल मखमल की संगति के कारण होता है।
गहरे ध्यान में भी यही होता है।
जब मन दिव्य चेतना के संपर्क में आता है, तो वह उसकी शुद्धता को स्वीकार करना शुरू कर देता है।
जैसे कृष्ण ने अर्जुन को रूपांतरित किया, चेतना आपके अवचेतन मन और अंततः आपके भाव विचारों और कार्यों को रूपांतरित करती है।
जब हीरा किसी भी रंग से खाली होता है, तभी वह मखमली रंग को स्वीकार करना शुरू कर सकता है।
अगर हीरे का अपना कोई रंग होता, तो वह ऐसा नहीं करता।
इसलिए, ध्यान में खाली मन (सभी विश्वासों, विचारों, अवधारणाओं, दृढ़ विश्वासों और संसार से प्राप्त किसी भी चीज़ से खाली) होना अनिवार्य है।
“योग चित्त वृत्ति निरोध”
– “योग आपकी सभी प्रवृत्तियों को समाप्त कर रहा है।”
– पतंजलि
तभी हम चेतना के “रंग” (गुण) को स्वीकार करना शुरू कर सकते हैं।
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